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श्री सिद्धिविनायक जी की आरती : जय देव जय देव

आरती लिरिक्स

सुख करता दुखहर्ता, वार्ता विघ्नाची।।
नूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची।।
सर्वांगी सुन्दर उटी शेंदु राची।।
कंठी झलके माल मुकताफळांची।।
जय देव जय देव__

जय देव जय देव,
जय मंगल मूर्ति।।
दर्शनमात्रे मनः,
कामना पूर्ति
जय देव जय देव ॥

रत्नखचित फरा तुझ गौरीकुमरा।।
चंदनाची उटी कुमकुम केशरा।।
हीरे जडित मुकुट शोभतो बरा।।
रुन्झुनती नूपुरे चरनी घागरिया।।
जय देव जय देव__

जय देव जय देव,
जय मंगल मूर्ति।।
दर्शनमात्रे मनः,
कामना पूर्ति
जय देव जय देव ॥

लम्बोदर पीताम्बर फनिवर वंदना।।
सरल सोंड वक्रतुंडा त्रिनयना।।
दास रामाचा वाट पाहे सदना।।
संकटी पावावे निर्वाणी, रक्षावे सुरवर वंदना।।
जय देव जय देव__

जय देव जय देव,
जय मंगल मूर्ति।।
दर्शनमात्रे मनः,
कामना पूर्ति
जय देव जय देव ॥

।। ।। श्री गणेशाची आरती ॥
शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको।।
दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहरको।।
हाथ लिए गुड लड्डू सांई सुरवरको।।
महिमा कहे न जाय लागत हूं पादको ॥
जय देव जय देव__

जय देव जय देव,
जय जय श्री गणराज।।
विद्या सुखदाता
धन्य तुम्हारा दर्शन
मेरा मन रमता,
जय देव जय देव ॥

अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि।।
विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी।।
कोटीसूरजप्रकाश ऐबी छबि तेरी।।
गंडस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारि ॥
जय देव जय देव__

जय देव जय देव,
जय जय श्री गणराज।।
विद्या सुखदाता
धन्य तुम्हारा दर्शन
मेरा मन रमता,
जय देव जय देव ॥

भावभगत से कोई शरणागत आवे।।
संतत संपत सबही भरपूर पावे।।
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे।।
गोसावीनंदन निशिदिन गुन गावे ॥
जय देव जय देव__

जय देव जय देव,
जय जय श्री गणराज।।
विद्या सुखदाता
धन्य तुम्हारा दर्शन
मेरा मन रमता,
जय देव जय देव ॥

।। ।। श्री शंकराची आरती ॥
लवथवती विक्राळा ब्रह्मांडी माळा,
वीषे कंठ काळा त्रिनेत्री ज्वाळा
लावण्य सुंदर मस्तकी बाळा,
तेथुनिया जळ निर्मळ वाहे झुळझुळा ॥
जय देव जय देव__

जय देव जय देव,
जय श्रीशंकरा।।
आरती ओवाळू,
तुज कर्पुरगौरा
जय देव जय देव ॥

कर्पुरगौरा भोळा नयनी विशाळा,
अर्धांगी पार्वती सुमनांच्या माळा
विभुतीचे उधळण शितकंठ नीळा,
ऐसा शंकर शोभे उमा वेल्हाळा ॥
जय देव जय देव__

जय देव जय देव,
जय श्रीशंकरा।।
आरती ओवाळू,
तुज कर्पुरगौरा
जय देव जय देव ॥

देवी दैत्यी सागरमंथन पै केले,
त्यामाजी अवचित हळहळ जे उठले
ते त्वा असुरपणे प्राशन केले,
नीलकंठ नाम प्रसिद्ध झाले ॥
जय देव जय देव__

जय देव जय देव,
जय श्रीशंकरा।।
आरती ओवाळू,
तुज कर्पुरगौरा
जय देव जय देव ॥

व्याघ्रांबर फणिवरधर सुंदर मदनारी,
पंचानन मनमोहन मुनिजनसुखकारी
शतकोटीचे बीज वाचे उच्चारी,
रघुकुलटिळक रामदासा अंतरी ॥
जय देव जय देव__

जय देव जय देव,
जय श्रीशंकरा।।
आरती ओवाळू,
तुज कर्पुरगौरा
जय देव जय देव ॥

।। ।। श्री देवीची आरती ॥
दुर्गे दुर्घट भारी तुजविण संसारी,
अनाथनाथे अंबे करुणा विस्तारी।।
वारी वारीं जन्ममरणाते वारी,
हारी पडलो आता संकट नीवारी ॥
जय देवी जय देवी__

जय देवी जय देवी,
जय महिषासुरमथनी।।
सुरवर-ईश्वर-वरदे,
तारक संजीवनी
जय देवी जय देवी ॥

त्रिभुवनी भुवनी पाहतां तुज ऎसे नाही,
चारी श्रमले परंतु न बोलावे काहीं।।
साही विवाद करितां पडिले प्रवाही,
ते तूं भक्तालागी पावसि लवलाही ॥
जय देवी जय देवी__

जय देवी जय देवी,
जय महिषासुरमथनी।।
सुरवरईश्वरवरदे,
तारक संजीवनी
जय देवी जय देवी ॥

प्रसन्न वदने प्रसन्न होसी निजदासां,
क्लेशापासूनि सोडी तोडी भवपाशा।।
अंवे तुजवांचून कोण पुरविल आशा,
नरहरि तल्लिन झाला पदपंकजलेशा ॥
जय देवी जय देवी__

जय देवी जय देवी,
जय महिषासुरमथनी।।
सुरवरईश्वरवरदे,
तारक संजीवनी
जय देवी जय देवी ॥

।। ।। घालीन लोटांगण आरती ॥
घालीन लोटांगण, वंदीन चरण।।
डोळ्यांनी पाहीन रुप तुझें।।
प्रेमें आलिंगन, आनंदे पूजिन।।
भावें ओवाळीन म्हणे नामा ॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव।।
त्वमेव बंधुक्ष्च सखा त्वमेव।।
त्वमेव विध्या द्रविणं त्वमेव।।
त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥

कायेन वाचा मनसेंद्रीयेव्रा,
बुद्धयात्मना वा प्रकृतिस्वभावात।।
करोमि यध्य्त सकलं परस्मे,
नारायणायेति समर्पयामि ॥

अच्युतं केशवं रामनारायणं,
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम।।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं,
जानकीनायकं रामचंद्र भजे ॥

हरे राम हर राम,
राम राम हरे हरे।।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण,
कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।

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