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विन्ध्येश्वरी जी की आरती : सुन मेरी देवी पर्वतवासनी

आरती लिरिक्स

सुन मेरी देवी पर्वतवासनी।।
कोई तेरा पार ना पाया माँ ॥

पान सुपारी ध्वजा नारियल।।
ले तेरी भेंट चढ़ायो माँ ॥

सुन मेरी देवी पर्वतवासनी।।
कोई तेरा पार ना पाया माँ ॥

सुवा चोली तेरी अंग विराजे।।
केसर तिलक लगाया ॥

सुन मेरी देवी पर्वतवासनी।।
कोई तेरा पार ना पाया माँ ॥

नंगे पग मां अकबर आया।।
सोने का छत्र चडाया ॥

सुन मेरी देवी पर्वतवासनी।।
कोई तेरा पार ना पाया माँ ॥

ऊंचे पर्वत बनयो देवालाया।।
निचे शहर बसाया ॥

सुन मेरी देवी पर्वतवासनी।।
कोई तेरा पार ना पाया माँ ॥

सत्युग, द्वापर, त्रेता मध्ये।।
कालियुग राज सवाया ॥

सुन मेरी देवी पर्वतवासनी।।
कोई तेरा पार ना पाया माँ ॥

धूप दीप नैवैध्य आर्ती।।
मोहन भोग लगाया ॥

सुन मेरी देवी पर्वतवासनी।।
कोई तेरा पार ना पाया माँ ॥

ध्यानू भगत मैया तेरे गुन गाया।।
मनवंचित फल पाया ॥

सुन मेरी देवी पर्वतवासनी।।
कोई तेरा पार ना पाया माँ ॥

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