श्री कोटड़ी श्याम चारभुजा चालीसा,
DOHA : ? छैल छबीले श्याम की,
शोभा बड़ी अनूप,
रूप राशी वे गुण सदन,
बने कोटड़ी भूप।।
धन्य धन्य यह कोटड़ी,
जहाँ विराजे श्याम,
श्री चारभुजा दर्शन करो,
निरखो छवि अभिराम।।
चार भुजा नयनानंद दायक,
निर्बल के हैं सदा सहायक।। ।।
श्री मस्तक पर कलंगी धारे,
छोगाला जी छैल हमारे।। ।।
अच्युत चरण सदा अभिनंदित,
सकल सृष्टी से हो तुम बंदित।। ।।
आनंद कंद सच्चिदा नंदा,
भव भैषज काटत जम फंदा।। ।।
करुना सागर परम दयालु,
देते नहीं थकते प्रतिपालू।। ।।
कोटि काम की शोभा धारे,
सोहत कनक वैत्र दोऊ न्यारे।। ।।
कंचन मॉल मुकुट मणि मंडित,
ऋषि मुनि ध्यान धरत अखंडित।। ।।
वारिज नयन श्याम तन शोभा,
दरश करत मुनिजन मन लोभा।। ।।
आप गदाधर सारंग पाणी,
भक्तवत्सल प्रभु सुख की खानि।। ।।
दक्षिण हस्त चक्र है सुन्दर,
राजत वाम कमल अति सुखकर।। ।।
शंख चक्र अरु पदम् बिराजे,
नुपुर चरण कमल पर राजे।। ।।
बाजत नित निपट घड़ियाला,
वाट वापी का ठाट निराला।। ।।
मेरु दंड की शोभा न्यारी,
फहरत ध्वजा लगे अति पारी।। ।।
बारह मास भक्तजन आते,
भांति भांति से इन्हें रिझाते।। ।।
प्रथम पुकार सुनत ही दाया,
ऐसा प्रभु बिरला ही पाया।। ।।
विघ्न मिटें सुख सम्पति पावे,
प्रभु त्रयताप तुटत ही मिटावे।। ।।
हा हा नाथ ये कजुग भारी,
दीन बंधू हम शरण तुम्हारी।। ।।
तुमको छोड़ कहाँ हम जावें,
किस ठाकुर का ध्यान लगावें।। ।।
तुम ही मत पिता और बंधू,
हमें बचाओ करुना सिन्धु।। ।।
श्याम गात पर बलि बलि जावें,
चरण कमल मे चित्त लगावें।। ।।
तव पद धूल की महिमा न्यारी,
अधम उधारन कलिमल हारी।। ।।
चारभुजा के नित गुण गायें,
दर्शन कर चरणामृत पायें।। ।।
सतत श्याम के हम हैं चाकर,
धन्य हुए प्रभु सन्मुख आकर।। ।।
है उपकार आपके भारी,
अद्भुत है प्रभु शक्ति तुम्हारी।। ।।
दीन जनों की आरती हरते,
नाम लेट सब काज सुधरते।। ।।
मांगो काम देते बहु दानी,
घर घर गुंजित दान कहानी।। ।।
जो कोई भक्त कोटड़ी आवे,
चारभुजा का ध्यान लगावे।। ।।
उसकी विपदा हरे सुखदायक,
कृपा सिन्धु सुन्दर सब लायक।। ।।
भाव सहित जो सुमन चढाते,
मन वंचित फल वे जन पते।। ।।
प्रातः काल धरै जो ध्याना,
दिवसही सुखद करै भगवाना।। ।।
प्रभु प्रसाद जो कोई चख लेवे,
गद गद होई चरण राज सेवे।। ।।
चार पदारथ उसके आगे,
सोये भाग्य तुरत ही जागे।। ।।
नाथ सदा आवें हम द्वारे,
जग पवन पद पदुम तुम्हारे।। ।।
कोटड़ी चलो करो प्रभु झांकी,
शोभा सीम श्याम छवि बांकी।। ।।
किंकर की अर्जी सुन लीजै,
अनपायनी प्रभु भक्ति दीजै।। ।।
क्षमा करो प्रभु भूल हमारी,
टारो विपद घटाए भारी।। ।।
प्रभु दास मांगत कर जोरे,
बसु सदा मन मानस मोरे।। ।।
निस दिन नाम रटूं सुख सारा,
चरण कमल का मधुप तुम्हारा।। ।।
ज्ञान ध्यान नहीं भक्ति न पूजा,
पापी अधमी न मो सम दूजा।। ।।
दिग दगंत मे विरुध बढाई,
मिले नाथ किंचित सेवकाई।। ।।
DOHA : ? बिंदु मंडल कर जोड़ कर,
करे विनय पुरजोर,
श्याम दया कर दीजिये,
प्रेमदान चित चोर।।