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शिव भजन - लो संभालो भोले अपनी कांवर लूट गई मे अभागन यहाँ पे लिरिक्स

लिरिक्स

लो संभालो भोले अपनी कांवर,

लूट गई मे अभागन यहाँ पे।।

सुनिये सुना रहा हूँ एक दास्तान है,

सावन का महीना बड़ा पावन महान है,

सुनिये सुना रहा हूँ एक दास्तान है,

सावन का महीना बड़ा पावन महान है,

लाखों कावड़िया जाते हैं श्री बाबा धाम को,

जपते हुए उमंग मे बम बम के नाम को,

इकलौता बेटा बाप का माता का नौनिहाल,

कांवड़ चढ़ाने के लिए वो भी चला एक साल,

उसकी पत्नी बोली कि आपके संग मे भी जाऊंगी,

कांवड़ आपके साथ मे जाकर चढ़ाउंगी,

खुशियो मे झूमते हुए वो दोनों चल पड़े,

भोले को जल चढाने के लिए घर से निकल पड़े,

सुल्तान गंज पहुचकर जहा से जल भरा जाता है,

गंगा के किनारे खुश होकर देखने लगे मेले के नज़ारे,

पति बोला आ रहा हूँ मे स्नान कर अभी फिर पीछे तू नहाना,

आ जाऊँ मे जभी और कूद पड़ा गंगा जी मे डुबकी लगाया,

फिर वो लौट कर वहाँ वापस नही आया,

पत्नी को छोड़ अकेली गया संसार मे,

वो बह गया श्री गंगा जी की बिच धार मे,

चारो तरफ मे जैसे एक चीत्कार मच गया,

गंगा के किनारे मे हाहाकार मच गया,

पत्नी पछाड़ खाती थी रोती थी जार जार,

की भोले तूने लूट लिया मेरा सोने का संसार।।

कावड़ चढ़ाने आये थे खुशियो मे झूमते,

कावड़ चढ़ाने आये थे खुशियो मे झूमते,

पर लूट गई मे भोले जी अब तेरे द्वार मे,

लो संभालो प्रभु अपनी कांवर,

लूट गई मे अभागन यहाँ पे,

लो संभालो भोले अपनी कांवर,

लूट गई मे अभागन यहाँ पे।।

लूट लिया तुमने मेरे सोने से संसार को,

कर दिया वीरान महकते हुए गुलजार को,

कौन कह रहा है के तू दानी दयावान है,

दिन और निर्बल पर सदा रहता मेहरबान है,

आज सभी बात तेरी मेने लिया जान है,

बस निर्दयी कठोर है पत्थर का तू भगवान है,

अरे उठ गया विस्वास मेरा आज तेरे नाम से,

क्या कहूँगी दुनिया को जा करके तेरे धाम से,

मे भी चली जाउंगी दुनिया से नाता तोड़कर,

अब यही मर जाउंगी पत्थ से सर को फोड़ कर,

तब देख के उस दुखिया को सब लोग तरस खाते थे,

कोई देता था तसल्ली और कई समझाते थे,

पर नही था उसको अपनी दिन और दुनिया का ख्याल,

फाड़ती थी तन के कपडे नोचती थी सर के बाल,

और फिर कभी कहती थी भोले झूठ तेरा नाम है,

दिन और दुखियो के आता नही काम है।।

लो संभालो प्रभु अपनी कांवर,

लूट गई मे अभागन यहाँ पे,

लो संभालो भोले अपनी कांवर,

लूट गई मे अभागन यहाँ पे।। ।।

पाँव मे छाले पड़े कुम्भला,,,,,

इरादे सेकड़ो बनते है बनके टूट जाते है,

कांवर वही उठाते है जिन्हें भोले बुलाते है,

पाँव मे छाले पड़े कुम्भला गया कोमल बदन,

मारे भूख प्यास के होती थी कंठ मे जलन,

बाल थे बिखरे हुए कपडे बदन के तार तार,

राह मे गिर पड़ती थी बेहोश हो के बार बार,

तब देख के हाल एक संत को आयी दया,

और पानी पिला करके पूछने लगे बेटी बता,

हाल जरा अपना सुना दे यहाँ पे बैठकर,

किस लिए तू फिर रही है मारी मारी दर बदर,

रो के वो कहने लगी बस फुट गया भाग है,

आज इस दुनिया मे लूट गया है सुहाग है,

संत बोले ,

संत बोले बेटी तू हिम्मत से जरा काम ले,

एक दफा भोले प्रभु का प्रेम से तू नाम ले,

देते है सबको सहारा तू उन्ही को याद कर,

जो भी तुझको कहना है चलकर वही फरियाद कर,

वो चीख करके कहने लगी झूठा तेरा ज्ञान है,

इस जगत मे कोई भी ईश्वर है ना भगवान है,

मारने उस संत को पत्थर उठा आगे बड़ी,

और थरथराके इस तरह कहते हुए वो गिर पड़ी।।

लो संभालो प्रभु अपनी कांवर,

लूट गई मे अभागन यहाँ पे,

लो संभालो भोले अपनी कांवर,

लूट गई मे अभागन यहाँ पे।। ।।

फिर सेकड़ो कावड़ियो की कावड़ झपट तोड़ दी,

मार के पत्थर ना जाने कितनो के सर फोड़ दी,

और पीछे पीछे पीछे आ गई वो भोले जी द्वार मे,

गिर पड़ी वो ओंधे मुह शिव शम्भू के दरबार मे,

और बोली चीख मारके क्या तू ही वो भगवान है,

अरे कर दिया बगिया को मेरे तूने तो वीरान है,

क्या मिला ओ निर्दयी सुहाग मेरा लूटकर,

रोने लगी हिचकिया लेले के फुट फुट कर,

के है अगर भगवान तो क्यों सामने आता नही,

बिजली आसमान से क्यों मुझपे गिराता नही,

और सर को पटकने लगी शिव लिंग पे वो बार बार,

बहने लगी सर से उसके चारो तरफ खून की धार,

के आज,

अरे आज तो प्रीतम को अपने लेके मे घर जाउंगी,

वरना तेरे धाम मे सर फोड़ के मर जाउंगी,

फिर हो गई बेहोश तो कुछ लोगे ने मिलकर उसे,

एक जगह लिटा दिया मंदिर के ला बाहर उसे,

लोगो ने समझा ये किनारा जगत से कर गई,

ये कौन थी बेचारी आज आके यहाँ मर गई,

फिर आई एक आवाज अरे भाग्य वान जरा आँख खोल,

फिर आई एक आवाज अरे भाग्य वान जरा आँख खोल,

प्रेम से शिव भोले जी के नाम की जयकार बोल,

प्रेम से शिव भोले जी के नाम की जयकार बोल,

वो चोंककर देखने को खोली जब अपनी नजर,

वो चोंककर देखने को खोली जब अपनी नजर,

उसके पति ही की गोद मे रखा था उसका सर,

बोली पति से लिपट ये कैसा चमत्कार है,

हस के पति बोला ये शिव भोले का दरबार है,

अरे सूखे हुए बाग़ ह्रदय के यही खिल जाते है,

मुद्दतो से बिछड़े हुए भी यही मिल जाते है,

अरे मै तो बह गया था श्री गंगा जी की धार मे,

लोग कुछ नहा रहे थे घाट के उस पार मे,

एक संत की पड़ी बहते हुए मुझपे नज़र,

कहते है कुछ लोग वही लाया मुझे तैरकर,

होश मे लाकर मुझे बतलाया वो तेरी खबर,

और बोला सीधे जा चला तू बाबा धाम की डगर,

अरे पत्नी तेरी कर रही है बस तेरा ही इंतजार,

तेरी जुदाई मे हो गई है बेचारी बे हाल,

और बह रही थी सन्त के सर से,

खून की एक मोटी सी धार भजन,

पूछा मेने संत से देखके ये बार बार,

हे बाबा कैसे चोट लगी है मुझे बताइये,

मुझसे कोई बात अपने दिल की ना छुपाइये,वो संत बोले,

मेरी एक बेटी है गुस्से मे आज हारकर,

फोड़ दिया सर मेरा पत्थर से मार मार कर,

और मुस्कुराके कहने लगे उसका ये उपहार है,

पर मेरी पगली बेटी को मुझसे बड़ा ही प्यार है,

पर है बड़ी जिद्दी अभी दुनिया से वो नादान है,

पर कुछ भी हो मे हूँ पिता और वो मेरी संतान है,

पर कुछ भी हो मे हूँ पिता और वो मेरी संतान है,

तब तो वो घबरा गई सुनकर पति देव के बयान को,

के नाथ मे भी तो मार बैठी थी एक संत दयावान को,

और पत्नी बोली,

फिर पत्नी बोली नाथ अब कांवड़ अभी मंगाइये,

फिर पत्नी बोली नाथ अब कांवड़ अभी मंगाइये,

और मेरे साथ भोले जी को चल के जल चढ़ाइये,

हाथ मे जल पात्र लिए जब दोनों आगे बढ़े,

देखा मुस्कुराते हुए संत को वहां खड़े,

और देखके उनको वहां हो गए हैरान है,

क्या दिव्य रूप उनका है चेहरा प्रकाशवान है,

फिर उन्हें दिखलाई पड़ा बहती है जटा से गंग,

और भोले बाबा थे खड़े हँसते हुए गौरी के संग,

थामने को शिव चरण वो दोनों जब आगे बढ़े,

लोप हो गए भोले जी शिव लिंग पे वो गिर पड़े,

तब रो के वो कहने लगे गलती क्षमा कर दीजिये,

आप की शरण मे है बाबा दया क्र दीजिये,

धन्य है माया तेरी तू दानी दयावान है,

चरणों मे अपनाइये हम मूर्ख है नादान है,

ओ भोले तेरा भेद कोई पाया नही पार है,

पूजता है तुमको तभी सभी संसार है,

फिर दोनों प्राणी भोले को कांवर चढ़ा हुए प्रसन्न,

फिर दोनों प्राणी भोले को कांवर चढ़ा हुए प्रसन्न,

और गाने लगे शर्मा जल चढ़ा के प्रेम से भजन,

के लो संभालो लो संभालो लो संभालो,

लो संभालो भोले अपनी कांवर,

बन गई मै सुहान यहाँ पे, बन गई मै सुहान यहाँ पे।। ।।

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