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श्री विनय चालीसा : नीब करौरी बाबा
चालीसा लिरिक्स
मैं हूँ बुद्धि मलीन अति।
श्रद्धा भक्ति विहीन ।।
करूँ विनय कछु आपकी।
हो सब ही विधि दीन ।। ।। चौपाई ।।
जय जय नीब करोली बाबा।
कृपा करहु आवै सद्भावा ।।
कैसे मैं तव स्तुति बखानू।
नाम ग्राम कछु मैं नहीं जानूँ ।।
जापे कृपा द्रिष्टि तुम करहु।
रोग शोक दुःख दारिद हरहु ।।
तुम्हरौ रूप लोग नहीं जानै।
जापै कृपा करहु सोई भानै ।। 4 ।।
करि दे अर्पन सब तन मन धन।
पावै सुख अलौकिक सोई जन ।।
दरस परस प्रभु जो तव करई।
सुख सम्पति तिनके घर भरई ।।
जय जय संत भक्त सुखदायक।
रिद्धि सिद्धि सब सम्पति दायक ।।
तुम ही विष्णु राम श्री कृष्णा।
विचरत पूर्ण कारन हित तृष्णा ।। 8 ।।
जय जय जय जय श्री भगवंता।
तुम हो साक्षात् हनुमंता ।।
कही विभीषण ने जो बानी।
परम सत्य करि अब मैं मानी ।।
बिनु हरि कृपा मिलहि नहीं संता।
सो करि कृपा करहि दुःख अंता ।।
सोई भरोस मेरे उर आयो।
जा दिन प्रभु दर्शन मैं पायो ।। 12 ।।
जो सुमिरै तुमको उर माहि।
ताकि विपति नष्ट ह्वै जाहि ।।
जय जय जय गुरुदेव हमारे।
सबहि भाँति हम भये तिहारे ।।
हम पर कृपा शीघ्र अब करहु।
परम शांति दे दुःख सब हरहु ।।
रोक शोक दुःख सब मिट जावै।
जपै राम रामहि को ध्यावै ।। 16 ।।
जा विधि होई परम कल्याणा।
सोई सोई आप देहु वरदाना ।।
सबहि भाँति हरि ही को पूजे।
राग द्वेष द्वंदन सो जूझे ।।
करै सदा संतन की सेवा।
तुम सब विधि सब लायक देवा ।।
सब कुछ दे हमको निस्तारो।
भवसागर से पार उतारो ।। 20 ।।
मैं प्रभु शरण तिहारी आयो।
सब पुण्यन को फल है पायो ।।
जय जय जय गुरुदेव तुम्हारी।
बार बार जाऊं बलिहारी ।।
सर्वत्र सदा घर घर की जानो।
रूखो सूखो ही नित खानो ।।
भेष वस्त्र है सादा ऐसे।
जाने नहीं कोउ साधू जैसे ।। 24 ।।
ऐसी है प्रभु रहनी तुम्हारी।
वाणी कहो रहस्यमय भारी ।।
नास्तिक हूँ आस्तिक ह्वै जावै।
जब स्वामी चेटक दिखलावै ।।
सब ही धर्मन के अनुयायी।
तुम्हे मनावै शीश झुकाई ।।
नहीं कोउ स्वारथ नहीं कोउ इच्छा।
वितरण कर देउ भक्तन भिक्षा ।। 28 ।।
केही विधि प्रभु मैं तुम्हे मनाऊँ।
जासो कृपा-प्रसाद तव पाऊँ ।।
साधु सुजन के तुम रखवारे।
भक्तन के हो सदा सहारे ।।
दुष्टऊ शरण आनी जब परई।
पूरण इच्छा उनकी करई ।।
यह संतन करि सहज सुभाऊ।
सुनी आश्चर्य करई जनि काउ ।। 32 ।।
ऐसी करहु आप अब दाया।
निर्मल होई जाइ मन और काया ।।
धर्म कर्म में रूचि होई जावे।
जो जन नित तव स्तुति गावै ।।
आवे सद्गुन तापे भारी।
सुख सम्पति सोई पावे सारी ।।
होय तासु सब पूरन कामा।
अंत समय पावै विश्रामा ।। 36 ।।
चारि पदारथ है जग माहि।
तव कृपा प्रसाद कछु दुर्लभ नाही ।।
त्राहि त्राहि मैं शरण तिहारी।
हरहु सकल मम विपदा भारी ।।
धन्य धन्य बड़ भाग्य हमारो।
पावै दरस परस तव न्यारो ।।
कर्महीन अरु बुद्धि विहीना।
तव प्रसाद कछु वर्णन कीन्हा ।। 40 ।।
** दोहा **
श्रद्धा के यह पुष्प कछु।
चरणन धरी सम्हार ।।
कृपासिन्धु गुरुदेव प्रभु।
करी लीजै स्वीकार ।।
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