राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।। ।।
⧫ ⧫ DOHA : ⧫ ⧫
श्री गुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।। ।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा ।।
अंजनी पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी ।।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥३॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा ।।
कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।। ।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥
शंकर सुवन केसरीनन्दन ।।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥
बिद्यावान गुणी अति चातुर ।।
राम काज करिबे को आतुर ॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।। ।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥
लाय संजीवन लखन जियाये ।।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥
रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।।
तुम मम प्रिय भरत सम भाई ॥१२॥
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।। ।।
सहस बदन तुमरो जस गावैं ।।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।।
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।। ।।
तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना ।।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्र जोजन पर भानु ।।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०॥
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।। ।।
राम दुआरे तुम रखवारे ।।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।।
तुम रच्छक काहू को डरना ॥२२॥
आपन तेज सह्मारो आपै ।।
तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।। ।।
नासै रोग हरै सब पीरा ।।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै ।।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।। ।।
चारों जुग परताप तुम्हारा ।।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु सन्त के तुम रखवारे ।।
असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।।
अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुह्मरे पासा ।।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।। ।।
तुम्हरे भजन राम को पावै ।।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
अन्त काल रघुबर पुर जाई ।।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥
और देवता चित्त न धरई ।।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥
संकट कटै मिटै सब पीरा ।।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
राम जी से राम राम कहियो,
कहियो जी हनुमान जी।। ।।
जय जय जय हनुमान गोसाईं ।।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई ।।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥
⧫ ⧫ DOHA : ⧫ ⧫
पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप ।।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर-भूप ॥