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खाटू श्याम कथा
श्री खाटू श्याम जी कथा
महाभारत काल में लगभग साढ़े पांच हज़ार वर्ष पहले एक महान आत्मा का अवतरण हुआ जिसे हम भीम पौत्र बर्बरीक के नाम से जानते हैं महीसागर संगम स्थित गुप्त क्षेत्र में नवदुर्गाओं की सात्विक और निष्काम तपस्या कर बर्बरीक ने दिव्य बल और तीन तीर व धनुष प्राप्त किए।
बहुत समय बाद कलयुग का प्रसार बढ़ते ही भगवान श्याम के वरदान से भक्तों का उद्धार करने के लिए वह खाटू में चमत्कारी रूप से प्रकट हुए। एक गाय घर जाते समय रास्ते में एक स्थान पर खड़ी होकर चारों थनों से दूध की धाराएं बहाती थी। जब ग्वाले ने यह दृश्य देखा तो सारा वृत्तांत भक्त नरेश (खंडेला के राजा) को सुनाया। राजा भगवान का स्मरण कर भाव विभोर हो गया। स्वप्न में भगवान श्री श्याम देव ने प्रकट होकर कहा मैं श्यामदेव हूं जिस स्थान पर गाय के थन से दूध निकलता है, वहां मेरा शालिग्राम शिलारूप विग्रह है, खुदाई करके विधि विधान से प्रतिष्ठित करवा दो। मेरे इस शिला विग्रह को पूजने जो खाटू आएंगे, उनका सब प्रकार से कल्याण होगा। खुदाई से प्राप्त शिलारूप विग्रह को विधिवत शास्त्रों के अनुसार प्रतिष्ठित कराया गया।
चौहान राजपूतों में नर्बदार कंवर हुई है जिन्होंने इस विग्रह को आतताईयों के विध्वंस से बचाने हेतु झोपड़े में रखा एवं सेवा पूजा की। औरंगजेब के शासनकाल में पुराने मंदिर का विध्वंस हो गया तथा उसके बाद जहां भगवान श्री श्याम देव का विग्रह प्रतिष्ठित किया गया वह आज भी विद्यमान है जहां देश के सभी कोनों से श्याम प्रेमी पूजा अर्चना एवं दर्शनार्थ आते हैं। अब नर्मदा कंवर के खानदान के ही चौहान राजपूत पुजारी हैं।
जय श्री श्याम !
source: shrishyamdarshan.in
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