**************** ADD ************************
The official logo for the brand - Prem Bhakti
Menu Icon
The official logo for the brand - Prem Bhakti
राशिफल dropdown arrow icon
आज का राशिफलकल का राशिफलबीते कल का राशिफलसाप्ताहिक राशिफलमासिक राशिफल
मंदिर dropdown arrow icon
सभी मंदिरप्रसिद्ध मंदिरदेवता के मंदिरस्थान अनुसार मंदिर
आरतीभजनचालीसामंत्रकथाकहानीआज का पंचांगज्योतिषी से बात

कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 23

तेईसवाँ अध्याय वर्णन आँवला तुलसी जान ।
पढ़ने-सुनने से ‘कमल’ हो जाता कल्यान ॥

नारद जी बोले - हे राजन! यही कारण है कि कार्तिक मास के व्रत उद्यापन में तुलसी की जड़ में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। तुलसी भगवान विष्णु को अधिक प्रीति प्रदान करने वाली मानी गई है।
राजन! जिसके घर में तुलसीवन है वह घर तीर्थ स्वरुप है वहाँ यमराज के दूत नहीं आते। तुलसी का पौधा सदैव सभी पापों का नाश करने वाला तथा अभीष्ट कामनाओं को देने वाला है। जो श्रेष्ठ मनुष्य तुलसी का पौधा लगाते हैं वे यमराज को नहीं देखते। नर्मदा का दर्शन, गंगा का स्नान और तुलसी वन का संसर्ग - ये तीनों एक समान कहे गये हैं। जो तुलसी की मंजरी से संयुक्त होकर प्राण त्याग करता है वह सैकड़ो पापों से युक्त ही क्यों न हो तो भी यमराज उसकी ओर नहीं देख सकते। तुलसी को छूने से कामिक, वाचिक, मानसिक आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

जो मनुष्य तुलसी दल से भगवान का पूजन करते हैं वह पुन: गर्भ में नहीं आते अर्थात जन्म-मरण के चक्कर से छूट जाते हैं। तुलसी दल में पुष्कर आदि समस्त तीर्थ, गंगा आदि नदियाँ और विष्णु प्रभृति सभी देवता निवास करते हैं।
हे राजन! जो मनुष्य तुलसी के काष्ठ का चन्दन लगाते हैं उन्हें सहज ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है और उनके द्वारा किये गये पाप उनके शरीर को छू भी नहीं पाते। जहाँ तुलसी के पौधे की छाया होती है, वहीं पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध करना चाहिए। जिसके मुख में, कान में और मस्तक पर तुलसी का पत्ता दिखाई देता है उसके ऊपर यमराज भी दृष्टि नहीं डाल सकते फिर दूतों की तो बात ही क्या है। जो प्रतिदिन आदर पूर्वक तुलसी की महिमा सुनता है वह सब पापों से मुक्त हो ब्रह्मलोक को जाता है।

इसी प्रकार आंवले का महान वृक्ष सभी पापों का नाश करने वाला है। आँवले का वृक्ष भगवान विष्णु को प्रिय है। इसके स्मरण मात्र से ही मनुष्य गोदान का फल प्राप्त करता है। जो मनुष्य कार्तिक में आंवले के वन में भगवान विष्णु की पूजा तथा आँवले की छाया में भोजन करता है उसके भी पाप नष्ट हो जाते हैं। आंवले की छाया में मनुष्य जो भी पुण्य करता है वह कोटि गुना हो जाता है। जो मनुष्य आंवले की छाया के नीचे कार्तिक में ब्राह्मण दम्पत्ति को एक बार भी भोजन देकर स्वयं भोजन करता है वह अन्न दोष से मुक्त हो जाता है। लक्ष्मी प्राप्ति की इच्छा रखने वाले मनुष्य को सदैव आंवले से स्नान करना चाहिए। नवमी, अमावस्या, सप्तमी, संक्रान्ति, रविवार, चन्द्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण के दिन आंवले से स्नान नही करना चाहिए।

जो मनुष्य आंवले की छाया में बैठकर पिण्डदान करता है उसके पितर भगवान विष्णु के प्रसाद से मोक्ष को प्राप्त होते हैं। जो मनुष्य आंवले के फल और तुलसी दल को पानी में मिलाकर स्नान करता है उसे गंगा स्नान का फल मिलता है। जो मनुष्य आंवले के पत्तों और फलों से देवताओं का पूजन करता है उसे स्वर्ण मणि और मोतियों द्वारा पूजन का फल प्राप्त होता है। कार्तिक मास में जब सूर्य तुला राशि में होता है तब सभी तीर्थ, ऋषि, देवता और सभी यज्ञ आंवले के वृक्ष में वास करते हैं। जो मनुष्य द्वादशी तिथि को तुलसी दल और कार्तिक में आंवले की छाया में बैठकर भोजन करता है उसके एक वर्ष तक अन्न-संसर्ग से उत्पन्न हुए पापों का नाश हो जाता है।

जो मनुष्य कार्तिक में आंवले की जड़ में विष्णु जी का पूजन करता है उसे श्री विष्णु क्षेत्रों के पूजन का फल प्राप्त होता है। आंवले और तुलसी की महत्ता का वर्णन करने में श्री ब्रह्मा जी भी समर्थ नहीम है इसलिए धात्री और तुलसी जी की जन्म कथा सुनने से मनुष्य अपने वंश सहित भक्ति को पाता है।

अन्य प्रसिद्ध कथाएँ

श्री सत्यनारायण कथा - चतुर्थ अध्याय

सूतजी बोले: वैश्य ने मंगलाचार कर अपनी यात्रा आरंभ की और अपने नगर की ओर चल दिए। उनके थोड़ी दूर जाने पर एक दण्डी वेशधारी श...

श्री सत्यनारायण कथा - द्वितीय अध्याय

सूत जी बोले - हे ऋषियों ! जिसने पहले समय में इस व्रत को किया था उसका इतिहास कहता हूँ, ध्यान से सुनो! सुंदर काशीपुरी नगरी...

सोमवार व्रत कथा

श्री गणेश आरतीकिसी नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर के सभी लोग उस व्यापारी का स...

श्री सत्यनारायण कथा - पंचम अध्याय

सूतजी बोले: हे ऋषियों ! मैं और भी एक कथा सुनाता हूँ, उसे भी ध्यानपूर्वक सुनो! प्रजापालन में लीन तुंगध्वज नाम का एक राजा ...

कामिका एकादशी व्रत कथा

॥ जय श्री हरि ॥कामिका एकादशी का महत्त्व:अर्जुन ने कहा: हे प्रभु! मैंने आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी का सविस...

श्री सत्यनारायण कथा - प्रथम अध्याय

एक समय की बात है नैषिरण्य तीर्थ में शौनिकादि, अठ्ठासी हजार ऋषियों ने श्री सूतजी से पूछा हे प्रभु! इस कलियुग में वेद विद्...

सभी कथाएँ खोजें